अस्तित्व$$$
एक पत्थर जो पड़ा था रास्ते पर,
देखता था आने जाने वालो को,
न कोई सवाल ,
न कोई जवाब,
बस सड़क का कोना और वोएक दुसरे कें साथी!
एक सुबह -सामने बनती विशाल ईमारत को देख कर सड़क बोली
में तो बंधी होन यह,
पर तो किस्लियें पड़ा हैं
यहाँजा किसी ईमारत की शान
बड़ाकिसी बगीचे में सज जा!!
वो बोला नहीं यहीं ठेक
होन शायद किसी की नजर पडे मुझ
परऔर वो खुद को मुझ सें जोड़े
और सोचे ईस ,
पत्थर को देखो,
कितनी थपेडे ,
कितनी ठोकरखा कर भी,
अपने रूप में पड़ा हैं,
अपने अस्तित्वे कें साथ,
हमे भी लड़ना हैं,जमाने सें,अपने गम से,
मगर अपने अस्तितेव कें साथ!!!
**daisy aggarwal**
jab ek pathar bhi apne astitva ko banaye rakhne ke liye kitne dashako tak apne ko sadak pe tikaye rakhta hai..........to hame to sach me kuchh karna hi hoga.........bahut khubsurat DAizy jee............god bless!!
ReplyDeletetanx mukesh ji
ReplyDeletei need ur appreciation[:)]
हमे भी लड़ना हैं,जमाने सें,अपने गम से,
ReplyDeleteमगर अपने अस्तितेव कें साथ!!!
bahoooooooooot badhiya...dear
छोटी रचना के माध्यम से बड़ा और प्रभावी सन्देश
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सशक्त रचना.....
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