Tuesday, May 25, 2010

अस्तित्व$$$
एक पत्थर जो पड़ा था रास्ते पर,
देखता था आने जाने वालो को,
न कोई सवाल ,
न कोई जवाब,
बस सड़क का कोना और वोएक दुसरे कें साथी!
एक सुबह -सामने बनती विशाल ईमारत को देख कर सड़क बोली
में तो बंधी होन यह,
पर तो किस्लियें पड़ा हैं
यहाँजा किसी ईमारत की शान
बड़ाकिसी बगीचे में सज जा!!
वो बोला नहीं यहीं ठेक
होन शायद किसी की नजर पडे मुझ
परऔर वो खुद को मुझ सें जोड़े
और सोचे ईस ,
पत्थर को देखो,
कितनी थपेडे ,
कितनी ठोकरखा कर भी,
अपने रूप में पड़ा हैं,
अपने अस्तित्वे कें साथ,
हमे भी लड़ना हैं,जमाने सें,अपने गम से,
मगर अपने अस्तितेव कें साथ!!!
**daisy aggarwal**

5 comments:

  1. jab ek pathar bhi apne astitva ko banaye rakhne ke liye kitne dashako tak apne ko sadak pe tikaye rakhta hai..........to hame to sach me kuchh karna hi hoga.........bahut khubsurat DAizy jee............god bless!!

    ReplyDelete
  2. tanx mukesh ji

    i need ur appreciation[:)]

    ReplyDelete
  3. हमे भी लड़ना हैं,जमाने सें,अपने गम से,
    मगर अपने अस्तितेव कें साथ!!!

    bahoooooooooot badhiya...dear

    ReplyDelete
  4. छोटी रचना के माध्यम से बड़ा और प्रभावी सन्देश

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छी और सशक्त रचना.....

    ReplyDelete